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ब॒ह्वी॒नां पि॒ता ब॒हुर॑स्य पु॒त्रश्चि॒श्चा कृ॑णोति॒ सम॑नाव॒गत्य॑। इ॒षु॒धिः सङ्काः॒ पृत॑नाश्च॒ सर्वाः॑ पृ॒ष्ठे निन॑द्धो जयति॒ प्रसू॑तः ॥५॥

English Transliteration

bahvīnām pitā bahur asya putraś ciścā kṛṇoti samanāvagatya | iṣudhiḥ saṅkāḥ pṛtanāś ca sarvāḥ pṛṣṭhe ninaddho jayati prasūtaḥ ||

Pad Path

ब॒ह्वी॒नाम्। पि॒ता। ब॒हुर॑स्य। पु॒त्रः। चि॒श्चा। कृ॒णो॒ति॒। सम॑ना। अ॒व॒ऽगत्य॑। इ॒षु॒ऽधिः। सङ्काः॑। पृत॑नाः। च॒। सर्वाः॑। पृ॒ष्ठे। निऽन॑द्धः। ज॒य॒ति॒। प्रऽसू॑तः ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:75» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वीरों को क्या धारण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (बह्वीनाम्) बहुत बाणों की (पिता) पालना करनेवाले के समान (अस्य) इसके (बहुः) बहुत (पुत्रः) पुत्र के समान बाण (समना) सङ्ग्रामों को (अवगत्य) प्राप्त होकर (इषुधिः) धनुष् (चिश्चा) चीं चीं शब्द (कृणोति) करता है तथा (पृष्ठे) पीठ पर (निनद्धः) नित्य बंधा और (प्रसूतः) उत्पन्न होता हुआ (सर्वाः) समस्त (संकाः) संग्रामस्थ वैरियों की टोली (पृतनाः, च) और सेनाओं को (जयति) जीतता है, वह तुम लोगों को यथावत् बना कर धारण करना चाहिये ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे वीरपुरुषो ! यदि धनुष् को तुम धारण करो तो शत्रुओं को विदीर्ण करके पुत्रों के प्रति पिता जैसे वैसे प्रजा पालन करके समस्त शत्रुसेनाओं को जीत सको ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्वीरैः किं धर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! बह्वीनां पितेवास्य बहुः पुत्रः समनाऽवगत्येषुधिश्चिश्चा कृणोति पृष्ठे निनद्धः प्रसूतस्सन् सर्वाः संकाः पृतनाश्च जयति स युष्माभिर्यथावन्निर्माय धर्त्तव्यः ॥५॥

Word-Meaning: - (बह्वीनाम्) इषूणाम् (पिता) पितेव (बहुः) (अस्य) (पुत्रः) पुत्र इवेषवः (चिश्चा) चिश्चेति शब्दानुकरणम् (कृणोति) करोति (समना) सङ्ग्रामान् (अवगत्य) प्राप्य (इषुधिः) इषवो धीयन्ते यस्मिन् (संकाः) सङ्ग्रामान्। संका इति सङ्ग्रामनाम। (निघं०२.१७)। (पृतनाः) शत्रुसेनाः (च) (सर्वाः) (पृष्ठे) (निनिद्धः) नित्यं बद्धः (जयति) (प्रसूतः) उत्पन्नः सन् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे वीरपुरुषा ! यदीषुधिं यूयं धरेत तर्हि शत्रून् विदार्य्य पुत्रान् प्रति पितर इव प्रजाः सम्पाल्य सर्वाः शत्रुसेना जेतुं शक्नुयुः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे वीर पुरुषांनो ! जर तुम्ही धनुष्य धारण केले तर शत्रूंचा नाश करून पिता जसा पुत्रांचे पालन करतो तसे प्रजेचे पालन करून संपूर्ण शत्रूसेनेला जिंकू शकता. ॥ ५ ॥